तिलवाड़ा (बालोतरा): शुक्रवार को ख्याला मठ, म्याजलार (जैसलमेर) के महंत गुरु गोरखनाथ जी महाराज विश्वविख्यात श्री मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाड़ा में पधारे। इस दौरान उन्होंने श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान, तिलवाड़ा के अधीनस्थ विभिन्न मंदिरों—श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर (थान मल्लीनाथ), श्री राणी रूपादे जी मंदिर (पालिया) व श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर (मालाजाल) में दर्शन कर पुण्य लाभ लिया। उन्होंने समस्त सनातन धर्म प्रेमियों के जीवन में सुख-शांति एवं समृद्धि की मंगल कामना की। महाराज जी के मंदिरों में पधारने पर संस्थान की ओर से सचिव सुमेरसिंह वरिया के नेतृत्व में भव्य व दिव्य स्वागत किया गया।
जसोलधाम भोजनशाला का किया निरीक्षण
दर्शन लाभ यात्रा के दौरान महंत गुरु गोरखनाथ जी महाराज ने थान मल्लीनाथ स्थित श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर परिसर में श्री राणी भटियाणी मंदिर संस्थान, जसोल द्वारा संचालित निःशुल्क "जसोलधाम भोजनशाला" का निरीक्षण किया। उन्होंने संस्थान अध्यक्ष रावल श्री किशन सिंह जसोल द्वारा मार्गदर्शित इस पुण्य कार्य की सराहना करते हुए कहा कि “अन्नदान महादान” है और यह शरीर व आत्मा दोनों की तृप्ति करता है। धर्मशास्त्रों में अन्नदान को सर्वोत्तम बताया गया है और इस कार्य से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।
संस्थान द्वारा करवाए जा रहे विकास कार्यों की प्रशंसा
गुरु गोरखनाथ जी महाराज ने तिलवाड़ा पशु मेले के पुनरुद्धार हेतु किए जा रहे संस्थागत प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि संस्थान अध्यक्ष रावल किशन सिंह जसोल के नेतृत्व में भक्तों की सुविधाओं के लिए किए जा रहे विकास कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रयास विलुप्त हो रही परंपराओं को पुनर्जीवित करने में मील के पत्थर साबित होंगे।
श्री रावल मल्लीनाथ जी व श्री राणी रूपादे जी के मार्ग पर चलना ही कल्याणकारी
महंत गुरु गोरखनाथ जी महाराज ने कहा कि श्री रावल मल्लीनाथ जी और श्री राणी रूपादे जी ने समाज को जो जीवन मूल्यों और आदर्शों का मार्ग दिखाया, वह आज के युग में और भी प्रासंगिक हो गया है। उनके पदचिह्नों पर चलकर ही आत्मिक और सामाजिक कल्याण संभव है। सेवा भाव, शुद्ध विचार और कर्म की पवित्रता ही इस जीवन की सार्थकता है।
पर्यावरण संरक्षण एवं लूणी नदी के पुनर्जीवन पर जोर
गुरु गोरखनाथ जी महाराज ने तिलवाड़ा सहित संपूर्ण मालाणी क्षेत्र की जीवनदायिनी लूणी नदी की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पहले लूणी मरु गंगा की तरह बहती थी, लेकिन अब प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण संकट में है। ओरण और गोचर भूमि का संरक्षण तथा नई पीढ़ी को पर्यावरण, जल, वृक्षों और प्रकृति के महत्व की शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने सभी से पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेने की अपील की।