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राणी रूपादे व रावल मल्लीनाथ जी के नाम जागरण में झूमे श्रोता


राणी रूपादे के भक्ति व शक्ति के मार्गों का गुणगान हम सबके लिए प्रेरणादायक: महंत नारायण गिरी


जसोल- मालाणी संस्थापक व मालाणी के महादेव रावल मल्लीनाथ व उनकी राणी रूपादे माता के नाम तिलवाड़ा मेला मैदान में भव्य जागरण का आयोजन किया गया। विक्रमादित्य सिंह बुड़ीवाड़ा ने बताया कि सन्त मण्डल अध्यक्ष दिल्ली एनसीआर तथा पंच दशनाम जूना अखाड़ा अंतराष्ट्रीय प्रवक्ता एवम् दुधेश्वर महादेव मठ गाजियाबाद श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज के पावन सानिध्य में आयोजित जागरण में छोटूसिंह रावणा ने अपनी सुमधुर वाणी में रावल मल्लीनाथ जी व राणी रूपादे, उनके गुरु उगमसी भाटी व् गुरु भाई मेघधारू जी के जीवन चरित्र पर आधारित परंपरागत भजनों की प्रस्तुति दी। साथ ही राइजिंग स्टार फेम कलर्स टीवी गायक जलाल खान ने लोक गायकी से लोगो को झूमने पर मजबूर कर दिया।

 मल्लीनाथ पशु मेला मैदान में आयोजित जागरण में महंत नारायण गिरी ने कहा कि पश्चिमी राजस्थान के महान संत रावल मल्लीनाथ और श्री राणी रूपादे के वंश का परिचय, जीवन दर्शन उनके द्वारा भक्ति व शक्ति के मार्गों का गुणगान हम सबके लिए प्रेरणादायक है। साथ कहा कि जागरण में जैसल तोरल प्रसंग, राणी रूपादे की वाणी की सादगी व प्रकाश, रूपादे की वेल, गुरु उगमसी की वेल, मल्लीनाथ जी के दोहे व राणी रूपादे की साखी व गुरु भाई मेघधारू के भजनों में जो छोटूसिंह ने बखान किया जो वर्तमान समय मे लोगो को उनके प्रति जोड़ रहा है। श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान समिति सदस्य कुंवर हरिश्चन्द्रसिंह जसोल ने कहा कि रावल मल्लीनाथ व राणी रूपादे के जीवन चरित्र की पालना आज के युग मे अतिआवश्यक है। क्षेत्र की मरु गंगा लूनी नदी पवित्र थी, लेकिन आज विकट परिस्थिति है आज लूणी नदी प्रदूषित हो गई है और ओरण व गोचर भूमि पर अतिक्रमण हो गये है। मालाणी क्षेत्र छतिशी कौम के सपूतों को आगे बढ़कर पर्यावरण को सुधारने का संकल्प लेना होगा। ओर साथ ही हमे नई पीढ़ी को प्रकृति पर्यावरण पानी व पेड़ पौधों का महत्व समझना होगा। उन्होंने कहा कि राणी रूपादे व रावल मल्लीनाथ जी ने अपने जीवन काल में जिस विचार धारा का प्रचार प्रसार किया व हर वर्ग के सम्प्रदाय व हर जाति ने उसका अनुसरण किया। ये भूमि वीर योद्धाओं व महान तपस्वी संतों की है। यहां रावल मल्लीनाथजी ने 700 वर्षों पूर्व सन्तों का समागम करवाया। जिसमें श्री राणी रूपादे जी एवम् उनके गुरु श्री उगमसी भाटी, गुरु भाई मेघधारूजी, संत शासक महाराणा कुंभा व उनकी रानी (मेवाड़), बाबा रामदेव जी रामदेवरा (पोखरण), जैसल धाड़वी व उनकी रानी तोरल (गुजरात) सहित अन्य समकालीन संतो ने भाग लिया और सामाजिक समरसता, धर्म व सत्य के मार्ग की ज्योत जगाई थी। इसी जगाई गई जोत का अनुसरण हम सबको करना है ताकि हमारा मनुष्य जीवन सफल हो। 

इस दौरान विष्णुपालसिंह सिणधरी, विजयसिंह टापरा, जितेंद्रसिंह, जगदीशसिंह, विक्रमसिंह डंडाली, रघुवीरसिंह बुड़ीवाड़ा, हिंदुसिंह जाजवा, गोपालसिंह कालेवा, मनोहरसिंह वेदरलाई, भोमसिंह जुंड, सोमाराम मेघवाल, गोपाराम, पुखराज पालीवाल, जोरसिंह तिलवाड़ा, ओमसिंह दईया थान मल्लीनाथ, रावतसिंह मकवाना, चतराराम माली, गोविन्दराम मेघवाल बोरावास सहित तिलवाड़ा एवम् आसपास के ग्रामों के धर्मप्रेमीगण मौजूद रहे।